Friday, December 27, 2024
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Child Labor: मजबूरियों के आगे दम तोड़ रहा बचपन: अतुल मलिकराम

Child Labor: एक सर्द सुबह बस स्टेशन पर बैठा मैं अपनी बस का इंतज़ार कर रहा था। तभी दो छोटे बच्चे मेरे पास आए। उनकी मासूम आँखों में थकान और समस्याओं से जूझते बचपन की कहानी साफ झलक रही थी। उनके नन्हें हाथों में पेन के कुछ पैकेट थे। वे मेरे पास आए और मुझसे पेन खरीदने की गुजारिश करने लगे। उनकी मासूमियत ने मेरे दिल को छू लिया।

मैंने पेन खरीदने के बहाने उन्हें अपने पास बैठाया और उनके निजी जीवन के बारे में कुछ जानने की कोशिश की। बातों-बातों में उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता गरीब हैं, जितना वे कमाते हैं उसमें घर का गुजारा (Child Labor) नहीं चलता। इसलिए वो दोनों सुबह पेन बेचते हैं और दोपहर में ढाबे पर बर्तन धोते हैं। उनकी बातों ने मेरे अंदर सवालों का तूफान खड़ा कर दिया। क्या इन बच्चों को अन्य बच्चों की तरह हँसने-खेलने, पढ़ने-लिखने और अपने उज्जवल भविष्य के सपने देखने का अधिकार नहीं है?
क्यों ये नन्हें बच्चे अपने नाजुक कँधों पर जिम्मेदारी का बोझ उठाने को मजबूर हैं? आखिर क्यों हमारे समाज में ‘बाल श्रम’ जैसा कलंक अब भी मौजूद है?

बाल श्रम, हमारे देश की एक ऐसी सच्चाई है, जिसे अनदेखा करना नामुमकिन है। कागजों पर तो बाल श्रम (Child Labor) रोकने का काफी प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन आज भी आपको चौराहों पर छोटा-मोटा सामान बेचते हुए या ढाबों पर काम करते हुए कई छोटू नजर आ जाएँगे।
2011 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब एक करोड़ बाल श्रमिक (Child Labor) हैं, लेकिन गैर-सरकारी आँकड़ों के अनुसार यह संख्या करीब 5 करोड़ तक पहुँचती है। कोविड-19 महामारी के बाद स्थिति और गंभीर हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में बाल श्रम में संलग्न बच्चों की संख्या 16 करोड़ हो चुकी है।

भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बाल श्रम की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। बाल श्रम में बच्चे सिर्फ शारीरिक श्रम (Child Labor) नहीं करते, बल्कि कई बार यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी का शिकार भी हो जाते हैं। इसके अलावा, जो बच्चे कच्ची उम्र में ही काम-काज में लग जाते हैं, वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
इससे उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ता है। बंधुआ मजदूरी में लगे बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है। कई बार यह प्रताड़ना शारीरिक, मानसिक और यौन उत्पीड़न तक पहुँच जाती है। यह केवल एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि देश के भविष्य और प्रगति पर एक गहरा धब्बा भी है।
बाल श्रम के पीछे गरीबी सबसे बड़ा कारण है। जब एक परिवार की मूलभूत जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं, तो माता-पिता बच्चों को काम पर लगाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। गरीबी न केवल बच्चों को श्रमिक (Child Labor) बनाती है, बल्कि उनके सपनों को भी कुचल देती है।
इसके अलावा, परिवार की खराब आर्थिक स्थिति, माता-पिता की मृत्यु या किसी अन्य कारण से बच्चों को काम करना पड़ता है। शिक्षा की कमी और अवैध व्यापार भी बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं।
बाल श्रम को खत्म करने के लिए सरकार, समाज और व्यक्तिगत स्तर पर सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। सबसे पहले, बाल श्रम के खिलाफ मौजूदा कानूनों को और अधिक सख्त बनाया जाए और उनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
इसके साथ ही, उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड निर्धारित किया जाए, ताकि यह दूसरे लोगों के लिए एक चेतावनी बने। दूसरी ओर, बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा को बढ़ावा देने और बाल श्रम के दुष्परिणामों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।

गरीबी इस समस्या की जड़ है, इसलिए सरकार को गरीब परिवारों के लिए आर्थिक सहायता, नकद हस्तांतरण, सब्सिडी और स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाएँ शुरू करनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रम (Child Labor) की समस्या अधिक है, इसलिए पंचायतों को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। वे न केवल बाल श्रम रोकने में मदद कर सकती हैं, बल्कि ऐसे बच्चों के लिए शिक्षा और पुनर्वास कार्यक्रम भी शुरू कर सकती हैं।
इसके अलावा, सामाजिक संगठनों और आंदोलनों जैसे ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन (Child Labor) फाउंडेशन जैसे संगठनों को समर्थन देना जरूरी है। ये संगठन बच्चों को बाल श्रम के जाल से निकालने और उनके पुनर्वास में मदद कर रहे हैं।
समाज के हर वर्ग को इन प्रयासों का हिस्सा बनना चाहिए, क्योंकि एकजुट प्रयासों से ही बाल श्रम जैसी सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म किया जा सकता है।
बाल श्रम (Child Labor) केवल एक सरकारी समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज की जिम्मेदारी भी है। जब तक हर व्यक्ति बाल श्रम के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएगा, तब तक इसे पूरी तरह खत्म करना मुश्किल होगा। हमें हर बच्चे को उसका अधिकार दिलाने के लिए सामूहिक प्रयास करना होगा। बच्चे देश का भविष्य हैं। एक खुशहाल और सशक्त भारत के निर्माण के लिए यह जरूरी है कि हर बच्चे को सुरक्षित बचपन और बेहतर भविष्य मिले। बाल श्रम न केवल एक सामाजिक समस्या है, बल्कि यह मानवता के खिलाफ भी एक अपराध है। सुरक्षित बचपन से ही सशक्त भारत का निर्माण संभव है।

लेख: अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

Reena Dhurwey
Reena Dhurwey
रीना धुर्वे एक वरिष्‍ठ पत्रकार और इक्षित वचन ग्रुप में उप संपादक हैं। पत्रकारिता जगत में पिछले चार साल से सक्रिय हैं। वर्ष 2020 से पत्रकारिता में करियर की शुरुआत की और यह क्रम लगातार जारी है। पत्रकारिता की ट्रेनिंग लेने के बाद करियर स्‍थानीय वेबसाइट और समाचार पत्रों में सब एडिटर के रूप में अपनी सेवाएं दीं। अब इक्षित वचन ग्रुप के साथ जुड़कर काम कर रही हैं। लाइफ स्‍टाइल, खाना खजाना, महिलाओं से जुड़े मुद्दों और खबरों पर इनकी खास रुचि है। हालांकि अन्‍य खबरों पर भी ये खास पकड़ रखती है। खबर को बेहतर से बेहतर तरीके से पाठकों तक पहुंचाने की इनकी कोशिश रहती है। जो सीखा है उसे निखारना और कुछ नया सीखने का क्रम जारी है।
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